? जाने कि कौन थे टीका लाल टपलू? भाजपा ने कश्मीरी पंडितों की ‘घर वापसी’ योजना का नाम उनके नाम पर क्यों रखा?
08 सितंबर 2024 जम्मू.जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए जारी भाजपा के ‘संकल्प पत्र’ या घोषणापत्र में कई बातें शामिल हैं. इनमें घाटी से आतंकवाद का सफाया करना, हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों को फिर से बनाना और सरकार के लिए काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को नियमित करने जैसे वादे किए गए हैं. लेकिन सबसे खास बात यह रही कि पार्टी ने अपने मुख्य वोट बैंक कश्मीरी पंडितों को लुभाने की कोशिश की है.भाजपा ने सरकार बनने पर टीका लाल टपलू विस्थापित समाज पुनर्वास योजना (TLTVSPY) के जरिये कश्मीरी पंडितों की ‘घर वापसी’ का वादा किया है. बहरहाल कश्मीर के बाहर के लोगों में ये जानने की उत्सुकता है कि टीका लाल टपलू कौन हैं? भाजपा ने योजना का नाम उनके नाम पर क्यों रखा? टीका लाल टपलू अपने दौर में कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े नेता,पेशे से वकील और घाटी के शुरुआती भाजपा नेताओं में से एक थे.उनकी हत्या यासीन मलिक के जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के आतंकवादियों ने की थी.टपलू सही मायनों में एक अखिल भारतीय शख्स थे.उनका जन्म श्रीनगर में हुआ था,उन्होंने पंजाब और उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा हासिल की.मगर वे आखिरकार जम्मू और कश्मीर में काम करने वापस आ गए.वैश्विक कश्मीरी पंडित डायस्पोरा के अंतरराष्ट्रीय समन्वयक उत्पल कौल याद करते हुए बताते हैं कि ‘वे कश्मीरी पंडितों के एक बड़े नेता थे.वे 1967 में हमारे आंदोलन और बाद में इमरजेसी के दौरान कई बार जेल गए.वे घाटी में भाजपा के उपाध्यक्ष बने,लेकिन कई कश्मीरी पंडितों की तरह उन्हें भी गोली मार दी गई.’ टीका लाल टपलू का RSS से गहरा जुड़ाव-टीका लाल टपलू का भाजपा से जुड़ाव होने के साथ-साथ आरएसएस में भी गहरी जड़ें थीं.इसलिए पंडितों की घर वापसी के लिए भाजपा की योजना का नाम देने के लिए वह एक आदर्श विकल्प बन जाते हैं. जब भाजपा अपने शुरुआती दौर में थी, तब टपलू का निजी करिश्मा भाजपा से कहीं ज्यादा था. कम से कम जम्मू-कश्मीर में तो ऐसा ही था. 12 सितंबर, 1989 को चिंकराल मोहल्ले में उनकी हत्या की नाकाम कोशिश की गई. कुछ दिनों बाद आतंकवादियों को सफलता मिल गई. जब टपलू जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट गए तो उन पर 3 आतंकवादियों ने करीब से 8 राउंड फायरिंग की. जिसके बाद से घाटी में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का एक लंबा और दर्दनाक दौर शुरू हो गया. हिंसा जल्द ही बढ़ गई, जिसके कारण अगले कुछ साल में कश्मीरी पंडित समुदाय के लगभग 97%लोग कश्मीर घाटी से पलायन कर गए. भाजपा को कश्मीरी पंडितों के वोट की उम्मीद-आज तक 14 सितंबर को कश्मीरी पंडित समुदाय बड़े पैमाने पर शहीदी दिवस के रूप में मनाता है. इस योजना का नाम उनके नाम पर रखकर भाजपा ने जम्मू में रहने वाले और उस इलाके के वोटोरों में एक बड़ी संख्या में शामिल कश्मीरी पंडितों की भावनाओं को छुआ है. कौल ने न्यूज18 से कहा कि ‘हमें खुशी है और हम आभारी हैं कि भाजपा कश्मीरी पंडितों के लिए इस तरह की योजना पर विचार कर रही है. जिसका नाम टीका लाल टपलू के नाम पर रखा गया है.’ उनका असर ऐसा था कि भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर केदार नाथ साहनी जैसे प्रभावशाली प्रचारक उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए. साहनी बाद में सिक्किम और गोवा के राज्यपाल बने. कश्मीरी पंडितों के बीच उनका आज भी बहुत ज्यादा सम्मान है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में बॉलीवुड फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में उनकी हत्या को नाटकीय रूप में दिखाया गया था. लेकिन क्या इससे भाजपा को जम्मू संभाग के तहत आने वाली 43 विधानसभा सीटों पर चुनाव जीतने में मदद मिलेगी. जहां कई सीटों पर कश्मीरी पंडितों का दबदबा है. सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में पार्टी इस मुद्दे को लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया अभियान के साथ-साथ घर-घर जाकर लोगों से संपर्क करेगी.